कहानीकार- मंगत रवीन्द्र
।। दु आखर ।।
खेती पांती म मेड़पार, कोला बारी म बिंयारा, नाचा कुदा म तान तपट्टा, घर दुवार म नेंव, बारी रूंधना हे ता बाता, धान बांना हे ता बीझा, उछल मंगल हे समहराई के बड़ महत्तम होथे। चाहे कछु करौ, कहौ सबे म माढ़न (भुमिका) जरूरी होथे। किस्सा धंधा घलो म माढ़न आथे। किस्सा (कहानी) ल तो आंट म कहथें पर किस्सा सुनाये के पहली बने कथइक (कथाकार/कहानीकार) हर जरूर माढ़न मढ़ाथे। ओकर पटका (कथानक) म किस्सा (कथा) कहे के उदेस (घ्येय) सुने के ललक (लालसा) रहिथे। कब, कइसे, कहां, काबर, कोन-कोन के बीच जइसे गोठ(घटना/प्रसंग) ल सुने, जाने के ललक (इच्छा/अभिलाषा) रहिथे। ”गुलाब लच्छी“ छत्तीसगढ़ी किस्सा के सिंघोरा (सिंघोरना=संग्रह करना) ए। एमा नानमुन माढ़न अऊ पटका ल दु कलम लिख के अंतस के मया ल बगराये बिना मोर मन नइ माढ़त हे। मोर छरिहाए मति म तुंहर असीस के घी ल दिहौ तेमा जुड़-जुड़ लगै अऊ रोसाये, कउवाये, छंदले, बिछले, खसले मोर चेत हा ठउर के ठउर आ सकै। अतके जोहार करत हौं………।
कहानी ल छत्तीसगढ़ी भाखा म किस्सा कहे जाथे। किसा (कहानी) हर किसे या कइसे शब्द ले बने होही तइसे लागथे, याने ओ बेरा घटना हर कइसे होइस जनोइया, सुनइया के मन म ललक (जाने के) रहिथे उहीच गोठ कहे के चलागत (परम्परा) हर किस्सा कहे के उदगरित (उत्पत्ति) होइस। किस्सा ल कब ले कहत आवत हें सच-सच बताना (कहना) बड़ अगम दहरा ए। कोन मानुख हर एला शुरू करिस बताना असासून ए । हिन्दी कहानी के उद्गरित (उत्पत्ति) विकास, काल अऊ कहानी के तत्व के तो गोलर भर (पर्याप्त) इतिहास हे। छत्तीसगढ़ी भाखा म किस्सा, दन्तकथा ले आये हे जेला लोक गाथा घलो कहे जाथे। कथा कहे के चलागत हर ओ पीढ़ी ले ए पीढ़ी म मुहखरा उतरत आवत हे। अब तो कम्प्यूटर छापाखाना अऊ पढ़इया लिखइया होये ले रकम-रकम के किसा धंधा के किताब छपत हे तइहा अइसन कहाँ पाता… जम्मो हर मुहखरा पीढ़ी उतार चलै। अतका जरूर हे के किस्सा कहइया- बबा, बड़का दाई, ममा दाई, ममा ददा(नाना) होथे। ओमन ले सीख-सीख लइका घलो मन अपन संगवारी के बीच म कह सकैं। कहानी कहे के बेरा (समय) घलो रहै। जब रतिया कुन जेवन पानी हो जाय ता सुतत घानी, धिमिक-धिमिक दीया बरते हे दंसना म हुंकारू देवत नाती-नतुरा मन बबा – बड़का दाई ले किस्सा ल सुनय कथा कहे कंठरी अऊ पेट के जरे अंतरी जइसे भंजरा ओ बेरा अऊ किस्सा के सबुत देथे।
किस्सा कहे अऊ सुने के कइ उदेस हे जइसे- गियान लेना, मनोरंजन, समझौता, मया पुरोना, रिसाये लइका ल भुलवारना, खुद कथइक बने के सउंक….। किस्सा कहइया के मान घलो बाढ़थे। कथइक म सियान बानी (समझदारी) घलो आथे। अइसे डंग ले किस्सा कहे , सुने के कइ उदेस हे। आज कहानी के उदेस हर थोरकन बदल गये हे। किस्सा कहे अऊ लिखे के सांचा (ढांचा) घलो हर आने हो गये हे एकर एई कारण हे के मनखे मन पढ़ लिख गईन , छापाखना होगे। हिन्दी, अंग्रेजी अंऊ आन भाखा के कहानी पढ़े सुने देखे ल मिलत हे सुनइया कम पढ़इया जादा होवत हे ता किस्सा ल कहे के बजाय लिखना अच्छा मानथे। चार झान ल बइठार के किस्सा सुनाइन अइसे, अतका कन (बर) टेम नइ ए। एकरे सेतीर कहानी रूप हर बदलत हे। मइहा के किस्सा अऊ आज के किस्सा म फरख दिखथे। हिन्दी कहानी के छै ठन गोड़(तत्व) होथे जेकर छत्तीसगढ़ी किसा म समोवन हे खैर… देश जान भेष होथे.। जइसे-जइसे जुग आथे, हर जीनिस म उतार चढ़ाव होथे ।
छत्तीसगढ़ी हर पहली ले करम करइया माटी ए। बइठ के कभू खाये ल नइ जानै। झगरा- लड़ाई, लंदफंद ले धुरिहा रइथे, सीधा म सीधा, दार ले भात के खवइया, नागर बइला खेती के करइया, आमा- अमली पीपर के जुड़ छांव तरी रहइया, पुक, भौंरा, डुडवा (कबड्डी) खो-खो के खेलइया, गुरतुर गोठ के जनइया, दाऊ नोनी बाबू, दाई- ददा, बबा सियान जइसे गुरतुर गोठ मयारू छत्तीसगढ़ भाखा के गोठ करइया भाई- बहिनी मन बुता करके संझा के आंट गुड़ी खदर खपरा के छानी परछी म जुड़ाथें- सिराथें त छींद गोइंदला के सरकी दसना म बइठ के घर पार के सियान बबा ले किस्सा धंधा सुनथे। चंदा सूरूज, हाथी घोड़ा, भालू, कोलहू परधान, मैंना मजूर राजारानी के किस्सा सुन-सुन के मन भरथें, अघाव जाथे। किसा सुने ल नान -नान लइका (नाती- नतुरा) मन हलस भरथें।
छत्तीसगढ़ी किस्सा हर कब उदगरिस ? कोनो मनखे हर धरे कस नइ बता सकै। नगमत के मंतरा (संाप बिछी के मंतरा), छारे फूंके के मंतरा, गुरूवापन मंतरा, चौका मंतरा, सुआ, ददरिया, करमा, भोजली, नेवरात, पंण्डवानी, ढोलामारू, चंदैनी, तारी-नारी जइसे गीत मन कपालिक हे, मुंहखरा गाये जाथे जइसे छत्तीसगढ़ी किस्सा कहे के घलो चलागत आइस। भारत ल सुराजी मीले के बाद हमर इहाँ ठौर-ठौर म मंदरसा खुलीस, पढ़इया पढ़ीन, पढ़त हें, छापाखना आइस तिही पाये के अब छत्तीगढ़ी भाखा घलो म किताब छपे लगीस। अभी नंगते कन कथइक मन (कहानीकार) अपन किस्सा ल छाप के परचार करत हें। अगासबानी, दूरदरसन घलो मन म किस्सा सुने ल मिलथे। अब छत्तीसगढ़ी भाखा हकर जम्मो ती ले (सभी क्षेत्रों में) उन्चान मारत हे (विकास हो रहा है)। कइ ठन पत्र पतरिका घलो म छत्तीसगढ़ी भाखा के किस्सा हर छपत हे याने अइसे (लगभग) उन्नीस सौ सत्तर के ए पार (से,आगे) छत्तीसगढ़ी किस्सा के डोंहडू (कली) हर विकास के हरियर पाना म हरियावत हे। अब तो छत्तीसगढ़ी हर भाषा बनइया हे।
हमन, मनखे भीर म (मानव समाज) रहिथन। इहें जीथन अऊ मरथन…। रंग-रंग के खेला लीला करत सुख अऊ दु:ख म जिदंगी ल पहाथन। मैंहर ए समाज म देखे , हेाथे, होवत हे अऊ होही तेन खेला दंस लीला (घटना) ल अपन किस्सा के बिसे (आधार) मान के कइ ठन किस्सा ल लिखेंव। गुलाब लच्छी म अइसनहा किस्सा मन के सकेला (संग्रह) हे। मैं हर कोलिहा बिघवा, चिराई चिरगुन अऊ ढेला माटी के किस्सा ल नई लिखे हौं के ढेला हर पान ल तोपिस त पान हर ढेला ल….कोलिहा हर कोलहनीन ल कहीस के लमहा हर बघवा ल…. मैं तो बोलता प्रानी के जीवन म घटे घटना ल कलम के मुड़ी म अरझाके कागज के छाती म धर देहे हौं। मोर मयारू पढ़इया (पाठक) मन, पढ़ के खचीत मया पाहीं, अइसे आसरा हे………….।
तुंहर
मंगत रवीन्द्र
हरमुनिया #सोनहा दीया #दूनो फारी घुनहा #अगोरा #गुलाब लच्छी #दौना बांचें कहानी ला इंटरनेट के परलोखिया मन चर देहें हांवय, बेरा म इंहॉं छापबोन.